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लखीमपुर हिंसाः प्रियंका गांधी के खिलाफ इन धाराओं में दर्ज है केस, ऐसा है प्रावधान
时间:2023-10-02 16:30:34 出处:आज सुबह का एक्सीडेंट阅读(143)
यूपी के लखीमपुर खीरी में पीड़ितों से मिलने जा रहींकांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें सीतापुर के पीएसी गेस्ट में गिरफ्तार करके रखा गया गया है. यूपी पुलिस ने प्रियंका और अन्य कांग्रेस नेताओं के खिलाफ धारा 151,लखीमपुरहिंसाःप्रियंकागांधीकेखिलाफइनधाराओंमेंदर्जहैकेसऐसाहैप्रावधान 107 और सीआरपीसी की धारा 116 के तहत मामला दर्ज किया है.प्रियंका गांधी के खिलाफ लगाई गई धाराएं जमानती और मुचलका भरे जाने से संबंधित हैं, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि कानून का उल्लंघन नहीं किया जाएगा. अब सवाल ये है कि यूपी पुलिस क्या लगा कि अगर प्रियंका गांधी को हिरासत में नहीं लिया जाता है, तो वे क्या अपराध करेंगी. वो अपराध धारा 144 के आदेशों का उल्लंघन है. उनके खिलाफ लगाई गईं धाराओं के बारे में आपको बताते हैं... अगर कोई पुलिस अधिकारी किसी संज्ञेय अपराध की योजना या साजिश के बारे में जानता है, तो मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और बिना वारंट के इस तरह के तरीके अपनाने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है. मगर ये तब संभव है, जब उस अधिकारी को ऐसा लगता है कि अपराध के कमीशन को और किसी तरह से रोका नहीं जा सकता है.सब सेक्शन (1) के तहत गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के समय से चौबीस घंटे से अधिक की अवधि के लिए हिरासत में नहीं रखा जा सकता. जब तक कि उसकी और हिरासत की आवश्यकता न हो या इस कोड के किसी अन्य प्रावधान के तहत वो अधिकृत न हो. या उस अन्य कानूनी धाराएं भी लागू हों.इस धारा का इस्तेमाल अन्य मामलों में शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा से जुड़ा है. जब एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट को यह जानकारी मिलती है कि किसी व्यक्ति द्वारा शांति भंग करने या सार्वजनिक शांति भंग करने या कोई गलत कार्य करने की संभावना है, जो संभवतः शांति भंग का कारण बन सकता है या सार्वजनिक शांति भंग कर सकता है. और उनकी राय है कि कार्रवाईके लिए पर्याप्त आधार है, तो इस धारा का इस्तेमाल किया जाता है. मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति से यह कारण बताने की अपेक्षा कर सकता है कि उसे जमानत के साथ या उसके बिना मुचलका भरे जाने का आदेश क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? ऐसे मामलों में एक अवधि के लिए शांति बनाए रखने के लिए उसे एक वर्ष से अधिक या अधिक समय के लिए एग्जीक्यूट किया जा सकता है, जैसा कि मजिस्ट्रेट उचित समझे. इस धारा के तहत किसी भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्रवाईकी जा सकती है. जब या तो वह स्थान जहां शांति भंग या अशांति की आशंका हो, उसके स्थानीय अधिकार क्षेत्र के भीतर हों या ऐसे अधिकार क्षेत्र के भीतर कोई व्यक्ति हो, जिसके उल्लंघन की संभावना हो.सीआरपीसी की धारा 116 के तहत मजिस्ट्रेट हिरासत में लिए गए व्यक्ति के खिलाफ कथित अपराधों की जांच करेगा. मजिस्ट्रेट आरोपी व्यक्ति को एक बांड पर हस्ताक्षर करने के लिए कह सकता है कि वे अपराध नहीं करेंगे. ऐसे मामले की जांच 6 महीने के भीतर पूरी करनी होती है.
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